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आँख मिचौनी / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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तोंय नैं छौ तेॅ कुच्छोॅ नैं छै
सब कुछ लागै छै बेकार।
काम धाम में मोॅन नैॅ लागै
दुनिया लागै छै निस्सार।
मोटर मेॅ बैठला पर लागै,
तहूँ साथेॅ दौड़े छौ।
गढ्ढा गुढ्ढी तड़पी जाय छौ
रुकला पर कहीं नुकाय छौ।
मंदिर-मंदिर साथ रहै छौ
साथैं माथा झुकाबै छौ।
मतुर खड़ा होला पर प्रिय हे।
तुरतेॅ कहाँ बिलाबै छौ?
ई रंग आँख मिचौनी कैहिनै?
समझ नैॅ कुछ आबै छै।
मनें मोंन पछताबा होय छै।
जीना नीरस लागै छै।
परिजन जेछथि स्वर्ग लोक में
मिलन जुलन लॅ आबै छथिन।
पुरजन मेॅ भी कोय-कोय प्रिय हे।
मिली-जुली के जाय छथिन।
तोंही नैॅ आबै छै केवल,
पता नै कहिनें रुसली छै।
कटियो टा नैं मोॅन लागै छै
कथी लॅ उल्टी बैठली छौ।

26/07/15 अपराहन 4 बजे