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आँख में लोगों के जब तक भी नमी बाक़ी रहे / रंजना वर्मा

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आँख में लोगों के जब तक भी नमी बाकी रहे
दिल मे खुशियों की जरा सी रौशनी बाकी रहे

जख़्म हों दिल मे भरी हो मुश्किलों से जिंदगी
अश्क़ पीने की मगर कारीगरी बाक़ी रहे

मौत आ दहलीज़ पे दस्तक बराबर दे रही
हो खुशामद मौत की पर ज़िंदगी बाकी रहे

पीर का परबत बहुत ऊँचा जमी है बर्फ़ भी
तोड़ दिल चट्टान का बहती नदी बाक़ी रहे

नफ़रतें बसतीं जहाँ उस ओर क्यों जाये कोई
किसलिये लोगों में पर बेचारगी बाक़ी रहे

चाहते सब ऐश से गुज़रे हमेशा जिंदगी
पर जरूरी है कि हम में आदमी बाक़ी रहे

सिसकियाँ ले कर जिये हम जिंदगी तो क्या जिये
जिंदगी के साथ ही जिंदादिली बाक़ी रहे