भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँगन का पेड़ / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
अपनी जड़ों पर ठीक उसी तरह खड़ा है
आँगन का पेड़ / जैसे चालीस साल पहले था
झुकी है बैल की गर्दन पूरी तरह
उसकी जड़ों के पास
रस्सी की रगड़ झेलता है लगातार
आँगन का पेड़।
आँगन का पेड़ सुखाता लेवे के कपड़े
पक्षियों को पानी पिलाता आँगन का पेड़
कभी परिहत, कभी पालकी
कभी हेंगा, कभी हरकनी
गुल्ली- डण्डा खेलता आँगन का पेड़
आँगन का पेड़ है परिवार की मिठास
वसन्त की महक
जेठ का सकून
भौरे की रोटी
सावन का झूला है आँगन का पेड़।
दिन-ब-दिन झरने लगा आँगन का पेड़
दिन-ब-दिन डरने लगा आँगन का पेड़
बनने लगा आग आँगन का पेड़।