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आँगन की किलकारियाँ / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
रात भर सोने न देती, जागती है,
चाँद पूनम का मचलकर माँगती है,
सुबह जैसे ही पकड़ना चाहता हूँ-
तितलियाँ सी दूर बेटी भागती है।
जो मिली है मंदिरों में माँगने से,
मसजिदों में चाँदनी को टांगने से,
जो फुदकती है चिरैया सी हमेशा
फुर्र होगी एक दिन इस आंगने से।
पालने में चाँदनी-सी खिलखिलाती
साथ अपने हर्ष की सौगात लाती,
दूर अंबर में चमकते चाँद तारे
बेटियाँ नीचे धरा पर झिलमिलाती।
बेटियों को प्यार से जो पालते हैं,
वे खुशी की बेल में जल डालते हैं,
भेद-भावों की मिटा कर खाईयों को
स्नेह की बाती हमेशा बालते हैं।
घर चहकता, चहकती जब बेटियाँ हैं,
मन महकता, महकती जब बेटियाँ हैं,
चुहचुहाती चाँदनी सी शोख चंचल
आंगने में किलकती जब बेटियाँ हैं।