आँगन निपल गहागही, मड़बा छराबल हे / अंगिका लोकगीत
भाई के पुत्र होने की खबर पाकर बहन उसके घर आती है। भाई उसका उचित सत्कार करने का निर्देश अपनी पत्नी को देता है। ननद को बधैया में इच्दित चीजें देने में भाभी अपनी असमर्थता प्रकट करती है, जिससे ननद रुष्ट होकर अपने घर वापस चली जाती है।
आँगन निपल गहागही, मड़बा छराबल हे।
मचिया बैठल तोहें रानी हे, मोरी ठकुराइन, मोरी चधुराइन हे॥1॥
आहे, आबै बाबा के दुलारी, गरब जनु बोलब हे।
आबहो ननदो आबहो, बैठहो पलँग चढ़ि, बैठहो मचिया चढ़ि हे।
आहे, गाबहो दुइ चार सोहर, गाय सुनाबहो हे॥2॥
गायब हे भौजो गायब, गाय सुनायब हे।
हमरा क दीहो चुनरिया, बालक गले हाँसुल हे।
अरे, परभुजी क चढ़न के लिए घोड़बा, हलसि घर जायब हे॥4॥
कहाँ हमें पैबै चुनरिया, बालक गल हाँसुल हे।
कहाँ पैबै, चढ़न के घोड़बा, हुलसि घर जैबै हे॥5॥
कानैत जाय ननदिया, ठुनकैत भगिनमा जाय हे।
हँसैत जाय ननदोसिया, भले रे मग तोड़ल हे॥6॥