आँगन बैठी सुन्यो पिय आवन चित झरोखन मे लख्यो परै ।
देवजू घूँघट के पट हू मे समात न फूल्यो हियो फरक्यो परै ।
नैनन आनँद के अँसुवा मनो भौँर सरोजन ते भरक्यो परै ।
दँत लसै मृदु मँद हँसी सुख सोँ मुख दाड़िम सो दरक्यो परै ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।