भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँचल माँ का / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
ठोकड़ी, बोटी, कोन्दा, पोदुम
भैरम बाबा की चट्टानी काया
विद्यमान है,
फिर कहाँ हो गए तुम गुम !
चिथड़ा-चिथड़ा हो रहा है माँ का आँचल
छिनती जाती माँ की यह गोद
फिर क्यों हो तुम गुमसुम,
ठोकड़ी, बोठी, कोन्दा, पोदुम...?