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आँधियों का प्रभाव देखा कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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आँधियों का प्रभाव देखा कर।
बादलों का बचाव देखा कर।

अपनी क़िस्मत पे गर्व कर लेकिन,
दूसरों का अभाव देखा कर।

सर्दियों में तो गीली यादों का,
और धधके अलाव देखा कर।

डोर, मज़बूत जो लगे तुझको,
कभी उसका तनाव देखा कर।

गर न दिखती ढलान हो ‘सज्जन’,
किस तरफ है बहाव देखा कर।