भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँधी गुस्से वाली है / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
ठंडी मस्त हवा शर्मीली,
आँधी गुस्से वाली है।
धूल भरे अंधड़ आते हैं
जड़ से पेड़ उखड़ जाते हैं,
गुस्से में नन्हें पौधों की
इसने जान निकाली है।
आँधी में कुछ नहीं सूझता,
कोई कितना रहे जूझता,
हमें डराने को इसने एक
काली बिल्ली पाली है।