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आँसुओं का खारापन / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
विशाल सागर किन्तु खारा
आँसू भी अनन्त हैं खारे ही
कितना बड़ा अचरज है
सागर की एक बूँद भी नहीं पीते
परन्तु आँसू पीना ही पड़ता है
अस्तित्व की पहली शर्त जो है
हम जीवित हों या न हों
जीवित होने का ढोंग करते रहते हैं
और आँसुओं का खारापन
उपहास करता है; हमारा जीवनभर
हम निरुत्तर होकर अपलक निहारते
जबकि हमें प्रश्नचिह्न अच्छे नहीं लगते...