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आँसुओं पे शब्द का सिंगार करके आ गए / सूरज राय 'सूरज'

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आँसुओं पर शब्द का सिंगार करके आ गए.
आँख का सारा नमक अशआर करके आ गए॥

आज अपने आप को देखा तो नज़रें झुक गईं
आईने का बस ज़रा आभार करके आ गए॥

हो गए हैं इक यक़ीनो-दिल के टुकड़े सैंकड़ों
प्यार में कितना बड़ा व्यापार करके आ गए॥

जीभ बेक़ाबू हुए जैसे मिली गुस्से की शह
शब्द पहले फू ल थे अंगार करके आ गए॥

पा लिये सारे ज़हीनों ने ख़ुशामद से ख़िताब
एक हम नादान जो इंकार करके आ गए॥

बेपनाह नफ़रत लिये दुश्मन खड़ा था राह में
मुस्कुराहट से उसे हम प्यार करके आ गए॥

क़ब्र में इक शाह की मैंने पढ़ा था एक दिन
इस जगह सारे सिकन्दर हार करके आ गए॥

प्यार का मानी तुम्हारी सोच में बिस्तर ही था
जिस्म को ही रूह की दीवार करके आ गए॥

वक़्ते-रुख़्सत चन्द आँसू थे किसी की आँख में
यूँ लगा जैसे समन्दर पार करके आ गए॥

मांग के सुबह मेरी किस्मत ने जुगनू दे दिये
मुस्कुरा के हम उसे स्वीकार करके आ गए॥

प्यार लेकर इक दिया लड़ने गया है उस जगह
सैकड़ों "सूरज" जहाँ से हार करके आ गए॥