आँसू का अनुबन्ध सिरहाने रख कर सोता है ।
जब ख़ुशियों का ज़िक्र छिड़े तू अक्सर रोता है ।
ख़ुशबू के ख़त हवा बाँटती, घर-घर जाती है,
बंद हमेशा तेरा ही दरवाज़ा होता है ।
रिश्ते क्या हैं, सिर्फ़ हितों कि दावेदारी है,
मन बनिया दिन भर सपनों के फ़सलें बोता है ।
खरपतवार बढ़ी जाती है, हर पल नफ़रत की,
तूने अपना खेत ना जाने, कैसे जोता है ?
सपनों की किरचें फिर भी रह जाती पलकों पर
तू अपनी आँखे अश्कों से कैसे धोता है ?