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आँसू जो झरे / ज्योत्स्ना शर्मा
Kavita Kosh से
41
बूँद-बूँद ने
रच दिया सागर
सखी प्रेम का।
42
दमक उठा
पत्तों के मन पर
बूँदों का प्यार।
43
मन की वीणा
बज उठते गीत
प्रेम-संगीत!
44
बूँद का मन
सीपी में गिर जाऊँ
मोती कहाऊँ!
45
माटी मगन
रंगों का जीवन में–
करो सर्जन!
46
टिमटिमाते
धरा पर जुगनू
नभ पर तारे।
47
तारों-से प्यारे
नयनों के जुगनू
प्रिये! तुम्हारे।
48
आँसू जो झरे
बुझे मन अगन
जीवन तरे!
49
याद–भँवरा
मन के शतदल-
आए, न जाए!
50
खुशी के रंग
तन-मन चढ़ी है
प्रेम की भंग!