आँसू मेरी लहरों के / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
कल की शाम बड़ी प्रिय रही
सागर के विशाल जलराशि के एक छोर पर
पूर्णतः शांत वातावरण
मैं अकेला झूमती लहरों के साथ
उनका प्रणय-गीत और उन्मत्त नृत्य
रेत के नर्म आवरण पर
कोमल स्पर्श सा मधुर आलिंगन
जानी-पहचानी अपनत्व भरी छुवन ने
मुझे भाव-विभोर कर दिया।
उनके मधुर संगीत के बहाव में
मेरी भावनाएँ भी तैरने लगीं
हृदय के स्पंदन और लहरों के आवर्तन में
एक तारतम्यता स्थापित हो चली
गीली रेत पर कुछ अक्षर उकेरने लगा
सुंदर शब्दों को चुनकर रचना की
उसके मादक यौवन के वक्षस्थल पर
अंतर्मन की अभिव्यक्ति, विचारों का प्रवाह
आदर्श मौन, नीरवता और अभिमंत्रित
लहरों ने आकर मेरे शब्दों को
पूर्णतः आत्मसात कर लिया
यह एक अविस्मरणीय क्षण रहा
हमारी मौन वार्ता का।
इठलाती मधुर मुस्कान युक्त लहरों ने कहा
यह तुम्हारा मदहोश करता साहचर्य
हम कभी न भूल पायेंगें
अतिरेक के वे क्षण और तुम्हारी भोली प्रीति
तुम्हारे सभी शब्द अत्यंत प्रिय रहे हैं
सुवासित पुष्प की तरह सच्चा प्रेम
जैसे सूर्य की नव रश्मियों का कोमल स्पर्श
बीज की तरह तुम्हारे एक-एक शब्द
मेरे अंतस की गहराईयों में बस गए है
गर्भ में पल रहे हैं
बहुत धन्यवाद तुम्हारा इस आत्मिक
आनन्दातिरेक अनुभव के लिए, मेरे प्रिय !
हमारा मिलन सफल और हम धन्य हुए
मैं अपलक निहारता रहा
आकाश की व्यापकता और सागर से भी गहरे
शब्दों की सीमा के परे अनमोल कथन पर
स्वयम को व्यक्त कर पाने में असमर्थ पाया
मुझे अब भी याद है मैं कुछ कहना चाहता था
उसने मेरी आखों में झांकते हुए कहा-
'तुम्हारे स्नेह पत्र एक-एक शब्द
मेरे लिए अमूल्य रत्न हैं
भले ही वो मेरी कलाई में नहीं सजे
पर ये मन-मस्तिष्क पर अमिट हैं'
मैं स्वम को रोक न सका और बोला -
'क्या मादक वसंत ऋतु के रस में सराबोर
मेरे शब्दों के गहनों से सज तुम आ सकोगी
अथवा वो सभी तुम्हारी कुक्षि में समाहित रहेंगे
पहले भी न जाने कितने गर्भ अब तक
प्रस्तुत न हो सके
तुम्हारी गोद सदा सूनी ही पायी है, मैंने
हमारे पवित्र प्रेम-पुष्प अब तक न खिले
मुझे अब तक उनकी प्रतीक्षा रही है'
मातृत्व मुखर हो उठा, उसने कहा -
'मेरे प्रिय !! तुम्हारी उर्जा का प्रवाह
आह! वह प्रथम प्रसव की पीड़ा
सब हुए अंकुरित, पल्लवित मुझमें
हैं सभी सुरक्षित, पलते साथ मेरे
हमारे प्यारे मोती, माणिक और रत्न
हैं आकर्षक, सुंदर, शांत और कोमल
अमूल्य, सम्मोहक, और चमकदार
यह सभी तुम्हारी सम्पत्ति
सम्भाल कर रखा है मैंने -
इस दुनिया के मानव के लिए
उपहार स्वरूप हमारा प्रेम-पुष्प
हमें अमर कर देगा
जब हम न रहेंगे यहाँ
सभी की भावनाओं में
हमारा प्रेम बहेगा।
अब मैं चलती हूँ मेरे चिरमित्र !
कृपा करके गलत न समझना मुझे
मैं तुम्हारी हूँ सदा ही
दौड़ती हूँ तुम्हारी नसों में रक्त बनकर
प्रत्येक क्षण तुममें ही है मेरा अस्तित्व
कभी आँखों से बह निकलूँगी तब जानोगे'।
वो लहरें आज भी मुझमें बहती है,
मेरे अंदर बड़े गहरे में
आती हैं कभी-कभी आँसू बनकर
यह उनका वादा जो था।