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आँसू / प्रतिभा चौहान
Kavita Kosh से
मेरा
आँखों से ढलकना
व्यर्थ है
अगर तुम्हारे दिल की गहराई में
कोई आवाज़ न हो
बदल जाते हैं हर्फ़ किताबों के भी
दिल में शिद्दत से
जज़्बातों का तूफ़ान जो हो
बेकार है सारी दुनिया के रिश्ते
जिनकी तर्ज पर होती हैं सियासत की बातें
जिससे चलते हैं सारी दुनिया के व्यापार
एक धागा काफ़ी है
विश्वास का
पिरोने को प्यार के अल्फ़ाज़ जितने हैं
कबूतरों के पाँव कभी बाँधे नहीं समय ने
उड़ जाते हैं वो परिन्देे हैं
जो लौट आए हैं वो अपने हैं