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आँसू / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
यहीं है वह विस्मृत संगीत
खो गयी है जिसकी झंकार,
यहीं सोते हैं वे उच्छवास
जहाँ रोता बीता संसार;
यहीं है प्राणों का इतिहास
यहीं बिखरे बसन्त का शेष,
नहीं जो अब आयेगा लौट
यही उसका अक्षय संदेश।
समाहित है अनन्त आह्वान
यही मेरे जीवन का सार,
अतिथि! क्या ले जाओगे साथ
मुग्ध मेरे आँसू दो चार?