भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंखों की भाषा - 1 / अमलेन्दु अस्थाना
Kavita Kosh से
जब भावनाएं अंतिम सीमा तक
जाकर थक जाएंगी,
शब्दकोश का अंतिम शब्द भी
खर्च हो चुका होगा,
अभिव्यक्ति के सारे रास्ते बंद हो चुके होंगे,
तब मेरी आंखें एकटक देखेंगी तुम्हें,
इस इंतजार में कि तुम शायद समझ सको
मेरी आंखों की भाषा।।