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आंखों में तजस्सुस है रफ्तार में तेज़ी है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

आंखों में तजस्सुस है रफ्त़ार में तेज़ी है
लड़की है कि जंगल में भटकी हुई हिरनी है

जिस बात को कहने से माज़ूर हैं लब तेरे
मैं ने तिरी आंखों में वो बात भी पढ़ ली है

बीते हुये लम्हों की, टूटे हुये रिश्तों की
यादों की चिता शब भर रह रह के सुलगती है

वो सिन्फ़े-सुख़न जिस को कहते हैं ग़ज़ल यारों
हर रूप में जंचती है हर रंग में खिलती है

खुलती है मेरे दिल के आंगन में वो ऐ 'रहबर`
बेलों से सजी संवरी उस घर में जो खिड़की है