आंखों में नये ख्वाब सजाने के लिये आ / रंजना वर्मा
आंखों में नये ख्वाब सजाने के लिये आ
रूठी हुई तकदीर मनाने के लिये आ
बोला है बहुत झूठ वफ़ा भूल चुका पर
फिर से कोई फरेब रचाने के लिये आ
तकदीर में मेरी तू कहीं है कि नहीं है
आ यूँ कि न फिर लौट के जाने के लिये आ
मौसम की तरह तू न बदल जाये यों कहीं
धरती है फटी बन घटा छाने के लिये आ
सपने हैं इरादे हैं मुहब्बत भी वफ़ा भी
वादे जो किये उनको निभाने के लिये आ
जाते ही तेरे हैं सभी मौसम बदल गये
छायी खिज़ा बहार बुलाने के लिये आ
जो छूट गया तू मेरी तकदीर भी फूटी
फूटी हुई किस्मत को बनाने के लिये आ
साँसों में हमारी तेरे नगमों की धुन बसी
कानों में वही बोल सुनाने के लिये आ
तकदीर में मेरी तू कहीं है कि नहीं है
आ यूँ कि न फिर लौट के जाने के लिये आ