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आंख के तिल में / सांवर दइया
Kavita Kosh से
दुनिया कितनी बड़ी है !
पर बहुत बड़ी दुनिया
है नहीं मेरी
धरती-गगन
हवा-पानी-अगन
के संग-संग पसरकर भी
कण ही हूं
उड़ता-फिरता
आ गिरता हूं तुम्हारी आंख में
जहां है तिल
तुम्हारी आंख के तिल में
समाकर जाना मैंने
यही है सारी दुनिया मेरी !