भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंख मिचौनी/ हरीश भादानी
Kavita Kosh से
आंख मिचौनी
खेला करती
किस तलघर जा छिपी
रोशनी
गूंगे अंधियारे ने घेरा
शहरीले जंगल में
मुझको
नवम्बर’ 78