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आंख में हैं दुख भरे फ़साने / नासिर काज़मी

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आंख में हैं दुख भरे फ़साने
रोने के फिर आ गये ज़माने

फिर दर्द ने आज राग छेड़ा
लौट आये वही समे पुराने

फिर चांद को ले गयीं हवाएं
फिर बांसुरी छेड़ दी सबा ने

रस्तों में उदास ख़ुशबूओं के
फूलों ने लुटा दिये ख़ज़ाने।