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आंगण आया / राजूराम बिजारणियां
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					‘‘पोढ़ो ढोला ढोलियै 
मधरा-मधरा बोलियै 
कूंट-कूंट उगेरया गीत 
धोरां रै धोरी 
भंवर भतूळै रै 
आंगण आया।’’
पून करी मनवार
हलायो पंखियो 
देंवता कोआ। 
लोटै पाणी घात 
धुवाया हाथ 
कराई चळू बादळी 
गजबी पावणा नै। 
कोर-कोर कांगणां 
मांड्या मांडणा 
लगायां मैंदी हाथ 
... मांझळ रात 
पोढी रेत, रळायां हेत 
ले ढोलै नै ढोलियै।
बाथमबांथ 
भव सूं दूर
भूवंती छिंया 
चढ़ी अकासां 
मिटांवती भेद 
दो होवण रो।
	
	