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आंधी / हरीश हैरी
Kavita Kosh से
बूढी ठेरी में
अचाणचकै इज
किंया बापरगी ज्यान
बण्या राह छोड़'र
चाली उझड़
खेत, खळां
गाँव-गुवाड़ में
डाकण दांई
हांफळा मारती नै देख'र
गाँव रा बडेरा
साची केवै हा
आ तो आंधी है।