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आंसुओं की न अब कतार मिले / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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आंसुओं की न अब कतार मिले
चाहते हैं हमें बहार मिले।
उनसे मिलना रहा सदा बाकी
यों तो उनसे हज़ार बार मिले।
जो हैं ईमानदार लोग यहां
उनके दामन ही तार तार मिले।
तूने बेचैनियां बहुत बख्शी
ज़िन्दगी अब ज़रा क़रार मिले।
आदमी आदमी से डरता है
अब दिलों में न ऐतबार मिले।
आरज़ूएं थीं दफ़्न सीनों में
चलते चलते कई हज़ार मिले।
हो रहे हर बशर उसी का ही
कोई उससे जो एक बार मिले।