भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंसुओं से बाँध लो संसार / रामकृपाल गुप्ता
Kavita Kosh से
आँसुओं से बाँध लो संसार।
दामिनी की द्युति गगन से बादलों की धार
रोते बादलों की धार
मौन सोये विश्व में होंगे मुखर कुछ गीत के स्वर
झुक उठेंगी डालियाँ नव पल्लवों का बोझ लेकर
देख बेबस आँसुओं कोआज निर्मम-सी हँसी रे
दीप उर के जल पडे़गे पर उसी दिन स्नेह से भर
मुँदी पलकों पर लिखा होगा सिसकता प्यार।
आँसुओं से बाँध लो संसार।
कब हँसी उषा निरन्तर कहाँ मानव की हँसी चिर
रे ने कुम्हलाई खिली कलिका कभी क्या वायु में तिर
आँसुओं से बाँध सुखी पंगु सरिता का किनारा
नील नभ को बाँधती है बादलों की श्रंखला धिर
वेदना की डालियों पर मत बसो पतझार
दामिनी की द्युति गगन से बादलों की धार
रोते बादलों की धार।
आँसुओं से बाँध लो संसार।