भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंसू अपनी चश्मे तर से निकलें तो/ राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
आंसू अपनी चश्मे तर से निकलें तो
ताज़ा दम हो जाएं घर से निकलें तो
बीमारों को थोड़ा-सा आराम मिले
बाहर दस्ते चारागर से निकलें तो
सच्चाई से पर्दा हट भी सकता है
अख़बारों की छपी ख़बर से निकलें तो
ना मुम्किन है वापस लौटें ख़ाली हाथ
चाँद पकड़ने लेकिन घर से निकलें तो
मंज़र में किरदार हमारा भी आ जाए
शर्त है पहले पस मंज़र से निकलें तो