आइए, चलते हैं थोड़ा घूमना हो जाएगा / रामकुमार कृषक
आइए, चलते हैं थोड़ा घूमना हो जाएगा
बदलियाँ भी साथ हैं दिल दोगुना हो जाएगा
ये थकन टूटन उदासी बेवजह बेशक नहीं
बावजह रोने से भी किसका भला हो जाएगा
लोग बेघर - बार हैं बेचेहरा लेकिन नहीं
देखिए बाग़ौर ख़ुद से सामना हो जाएगा
दौरे - मुश्किल है चलो कुछ तो ठठाकर देख लें
क्या पता कल किसलिए हंसना मना हो जाएगा
दोस्ती है दुश्मनी भी और यह उम्मीद भी
एक दिन हर शख़्स मेरा आशना हो जाएगा
बेवजह जलते नहीं जलनाअगर हम छोड़ दें
रात गहराएगी अन्धियारा घना हो जाएगा
मान लीजे वक़्त ही बेवक़्त आ पहुँचा अगर
वक़्त की वल्गा को बढ़कर थामना हो जाएगा
काश , हमसे इस फ़कीरी में कबीरी भी सधे
ठाठ अपनी शायरी का शाह'ना हो जाएगा
हारकर भी जीतने का गुर अगर हम सीख लें
पूछिए मत ज़िन्दगी में क्या से क्या हो जाएगा