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आइडेंटिटी क्राइसिस / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
यह सिर्फ स्त्रियों के साथ ही है
वर्ना यहाँ तो लिपस्टिकों और नेलपालिश के भी शेड्स और नंबर है
रागों के नाम है रंगों की अलग पहचान है
सड़कों के
चौराहों के
देश और देशों को अलग करने वाली
...विभाजन रेखाओं के भी नाम हैं
हम ही हैं
जिन्हें अपनी पहचान जताने के लिए
अपने नाम के आगे- पीछे एक पूँछ
लगानी पड़ती है
बीज अंकुरित होते ही
अपने साथ नयी पहचान ले आता है
काले बादल
साफ़-सुथरे आकाश पर दस्तक दे कर
उसकी पहचान स्थिर कर देता है
सिर्फ हमीं है
जो वाकई पहचान के संकट से गुजर रही हैं
और संकट भी ऐसा कि
इस संकट के हल की चाबियाँ
हमारे ही बगलगीरों ने कहीं गुमा दी है