भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आइल बा वोट के जबाना हो / विजेन्द्र अनिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आइल बा वोट के जबाना हो,
पिया मुखिया बनिजा।

दाल-चाउर खूब मिली, खूब मिली चीनी,
फेल होई झरिया-धनबाद के कमीनी,
पाकिट में रही खजाना हो,
पिया मुखिया बनिजा।

जेकरा के मन करी, रासन तू दीह
जेकरा से मन करी, घूस लेई लीह,
हाथ में कचहरी आ थाना हो,
मुखिया बनिजा।

तोहरा से बेसी के करेला सेवा?
जिनिगीन ओढ़त रहल टाट अउर लेवा,
कबो ना मिलल नीमन खाना हो,
पिया मुखिया बनिजा।

अहरा आ पोखरा के लीह तू ठीका,
कीनि दिह हमरा के झुमका आ टीका,
गावे के फिलिमी तराना हो,
पिया मुखिया बनिजा।

आइल बा वोट के जबाना हो,
पिया मुखिया बनिजा।

रचनाकाल : 02.2.1978