आइ गेलै फागुन मास / जयराम सिंह
आई गेलै फागुन मास
बहकलै बतास न पिया केरेऽ अइलै पंतिया
सखी के पहुनवाँ के ओर
देखि के आवै लोर से झरि लगलै
दुन्हुं अंखिया॥
(1)
अमवां के डलिया से बोलऽ है कोयलिया,
जे कनवां में चुभे जैसे बान गे ऽऽऽ,
ठूंठी रे पंकरिया तर अहिरन के छौड़ा-छौड़ी,
छेड़ऽ हकै बिरहा के तान गे ऽऽऽ,
सुधिया के बदरा फुला हकै,
कजरा धुला हकै, गाला पर से गिरे छतिया॥
आई गेलै फागुन मास...
(2)
भोरे भिनुसरवा में छनिया के मुडेरा पर,
कौआ कौवी बाटे दुन्हु चाउर गे ऽऽऽ,
आझु कोई ऐतन, आवे लागी ओहे हथिन,
एही जानी माना हमर बाउर गे,
बामा अग फरकऽ है बेरी बेरी,
देखऽ हकु हेरि-हेरि पिया के आवे के रहिया।
आई गेले ... पतिया॥
(3)
तुलसी के पेड़वा तर करऽ हूँ मनोतिया।
कि नेहा-धोके दे हकूँ हुमाध गे,
संझिया के दिया बारी दे हकूँ संझौतिया,
कि पिया के होवे न एको व्याध में
दिनों भर माना टंगल रहऽ हकै,
रतिया के चंदा देखी टुकुर टुकुर काटुँ रतिया।
आई गेले फागुन ... पतिया॥