Last modified on 31 अगस्त 2013, at 13:21

आईं हम रउरा मिलि गाईं / कुलदीप नारायण ‘झड़प’

आईं हम रउरा मिलि गाईं।
भरीं विश्व में शुचि कल्याण,
करीं राग के नव निर्माण,
पुलकि उठी जगती के प्राण,
जग में अमृत धार बहाईं।
इच्छा राउर मन हमार हो,
भरल हृदय में स्नेह-धार हो,
वसुधा सुभामयी सुढार हो,
मोह-मूल-दुख-द्वैत मिटाईं।
हम बाँसी राउर स्वर गूँजे,
जनम-जनम के आसा पूजे,
जन-मानस-मराल कल कूजे,
हम प्रशान्त सागर बनि जाईं।
प्रेम-नदी में खिले सुमन-वन,
ओपर थिरकी प्रात रश्मि-धन,
रस-मद-मत्त-मधुप कृत गुंजन,
हो अनन्त सुख, जगत जगाईं।
रउरा धन, हम तरल फुहार,
बरिसि करीं शीतल संसार,
ई असार जग हो, सुखसार,
स्वाति श्याम-घन जग में छाईं।
एक बेर हम रउरा गवलीं,
खिलल सुमन, जन-मन लहरवलीं,
ससि, दिनकर, तारक पसरवलीं,
फिर प्रकाश दीं, तमस भगाईं।
राह न लउके, घोर अन्हरिया,
जेने देखीं, ओने करिया,
मत्स्य न्याय केहू ना गोहरिया,
मीत! प्रीत के हाथ बढ़ाईं।
आईं, हम रउरा मिलि गाईं।।