भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईना-ए-अहसास लिए फिरते हैं / रमेश तन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आईना-ए-अहसास लिए फिरते हैं
किरदार की बू-बॉस लिए फिरते हैं
क्या लोग हैं हम खुद को समझने से भी
क़ासिर हैं मगर आस लिए फिरते हैं।