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आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है / अख़्तर अंसारी
Kavita Kosh से
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
दुनिया समझ रही है के आँखों में ख़्वाब है
रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
क्या चीज़ उफ़ ये कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब है
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है