भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है / अख़्तर अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
दुनिया समझ रही है के आँखों में ख़्वाब है

रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
क्या चीज़ उफ़ ये कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब है

ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है