आईना फ़र्श पर गिरने को है
हर कहीं कांच बिखरने को है
कैसा सूरज है रोशनी की जगह
पूरा घर आग से भरने को है
हौसला चोटियों पे चढ़ने का,
सिर्फ़ फिसलन ही ठहरने को है
सर कटे पेड़ पूछ देते हैं,
यहां से कौन गुज़रने को है?
एक आंसू सम्हाल कर बैठी,
आंख में ख़्वाब उतरने को है