आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊँगा / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा
रंग कैसा हो, ये सोचोगे तो याद आऊंगा
जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊंगा
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊंगा
ध्यान हर हाल में जाये गा मिरी ही जानिब
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊंगा
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊंगा
चांदनी रात में, फूलों की सुहानी रुत में
जब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊंगा
जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊंगा
याद आऊंगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊंगा
शैल्फ़ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊंगा
शम्अ की लौ पे सरे-शाम सुलगते जलते
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊंगा
जब किसी फूल पे ग़श होती हुई बुलबुल को
सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा