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आईने के बरअक़्स / नीलोत्पल

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आईने के बरअक़्स
सामान्य बने रहो ज़िंदगी में।

कोई संकट नहीं आसान
हर कोई मिलता है
एक आईना दिखाता है
मैं देखता हूं उन आईनों में ख़ुद को
एक उलझी हुई तस्वीर के साथ

मैं मुक्त नहीं हो पाता
एक वलय बनाता हूं अपने आसपास
उसमें रखता हूं अपनी जिंदगी का एक टुकड़ा
दूसरों के उधार पर

इस तरह ऊंघते हुए जीता हूं
जहां जाना होता है वहां विस्तार नहीं मिलता
अनिश्चय में रखता हूं एक पत्थर
अपने लिए
लेकिन उस पर मेरा नहीं
किसी और का नाम है
उसे अपनाता हूं
उस नदी की तरह
जो गिरती मेरी नींद और उदासी में
जिसे कहीं नहीं पंहुचना है

ये धुंधवाता आकाश, पिघलते पहाड़
नज़दीक आते
बरसते हैं नक्षत्रों की तरह
उनकी रोशनी में जीवित हो उठती है
परछाईयां मेरे शब्दों की

मेरे आसपास की सलवटों में डूबे समुद्र ने
जब भी लहरों को मेरी ओर फेंका
बाहर आया हूं
पीया है मैंने लहरों का उठना और गिरना
यहां नहीं मिलते
टूटे जीर्ण आईने
गिराए जाते हाथ,
मछलियों को पकड़ते जाल,
गढ़ी मूर्तियों के खंडित मान

एक मनुष्य का ढंग किस तरह सिमटता है
और हम चुप गुज़र जाते हैं
एक-दूसरे के आईने में झांकते हुए
नहीं दिखती कोई कौंध इस जीवन में
नहीं बरसती
मैं आईने-दर-आईने चमकाता हुआ
कोशिश करता हूं लड़खड़ाते
खड़े रहने की