भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईने पर यक़ीन रखते हैं / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आईने पर यक़ीन रखते हैं ,
वो जो चेहरा हसीन रखते हैं

आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं

दीन-दुखियों का है खुदा तब तो ,
आओ हम खुद को दीन रखते हैं

जिनके दम पर है आपकी रौनक ,
उनको फिर क्यों मलीन रखते हैं

विषधरों के नगर में रहना है ,
हम विवश होके बीन रखते है

ये सियासत की फ़िल्म है जिसमें ,
सिर्फ़ वादों के सीन रखतें हैं