आई गेन ॠतु बौड़ी दाईं जनो फेरो, झुमैलो / गढ़वाली
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आई गेन ऋतु बौड़ी दाई जनो फेरो, झुमैलो
ऊबा देसी ऊबा जाला, ऊंदा देसी ऊंदा, झुमैलो
लम्बी-लम्बी पुगड़्यों माँ र..र. शब्द होलो, झुमैलो
गेहूँ की जौ की सारी पिंग्ली होई गैने, झुमैलो
गाला गीत वसन्ती गौं का छोरा ही छोरी, झुमैलो
डांडी काँठी गूँजी ग्येन ग्वैरू को गितूना, झुमैलो
छोटी नौना-नौनी मिलि देल्यूँ फूल चढ़ाला, झुमैलो
जौं का भाई रला देला टालु की अँगूड़ी, झुमैलो
मैतु बैण्युँ कु अप्णी बोलौला चेत मैना, झुमैलो
भावार्थ
--'वसन्त ऋतु लौट आई, फसल माँड़ते समय बैलों के चक्कर के समान, झुमैलो !
ऊपर देश वाले ऊपर जाएंगे, नीचे देश वाले नीचे, झुमैलो !
लम्बी-लम्बी क्यारियों में (किसानों की) र..र. ध्वनि होगी, झुमैलो!
गेहूँ और जौ के सादे खेत पीले हो गए हैं, झुमैलो!
वसन्ती गीत गाएंगे, गाँव के लड़के-लड़कियाँ, झुमैलो!
छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ गूँज उठी हैं ग्वालों के गीतों से, झुमैलो!
छोटे बालक-बालिकाएँ मिलकर दहलीजों पर फूल चढ़ाएंगे, झुमैलो!
जिसके भाई होगा, अंगिया और ओढ़नी का उपहार देगा, झुमैला!
और मायके बुलाएगा बहिन को चैत्र माह में, झुमैलो!'