भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आई गैन रितु बौड़ी, दाँई जसो फेरो / गढ़वाली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आई गैन रितु बौड़ी, दाँई<ref>लौट</ref> जसो फेरो<ref>चक्कर</ref>,
फूली गैन बण बीच, ग्वीराल बुराँस!
झपन्याली<ref>हरी-भरी</ref> डाल्यों मा, घूघती<ref>फाखता</ref> धूरली,
गैरी-गैरी<ref>गहरी</ref> मा, म्योलड़ी बोलली
उचि उचि डाँड्यों मा, कफू वासलो।
मौलली भाँति भाँति की फुलेर डाले!
गेऊँ-जौ की सारी<ref>खेत</ref>, सैरीं<ref>सरसों</ref> पिंगली ह्वैन,
राडा की रडवाड़ियों मा, मारी रुणाली!
डाँडी काँठी गूँज, ग्वेरू की मुरल्योंन<ref>बांसुरी</ref>,
गौं की नौनी स्ये, गीत वसंती गाली।
जौं की ब्वई<ref>माँ</ref> होली, मैतुड़ा<ref>मायके</ref> बुलाली,
मेरी जिकुड़ी मा ब्वै, कुयेड़ी-सी लौंकी।

शब्दार्थ
<references/>