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आई है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
पहाडों का सीना चीर
रास्ते के हर पत्थर को
ठोकर मार
यहां तक
जब चली आई है नदी
तो अब क्यों न
हमीं आगे बढ़कर
बांहों में भींच लें इसे
हमीं से मिलने तो आई है यह !