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आउ अब अहद कों बचायौ जाय / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
आउ अब अहद कों बचायौ जाय।
तालिबे-इल्म कों पुकारौ जाय॥
जा की बारिस हैं चन्द्र की किरनें।
वा की ताकत कों और समझौ जाय॥
जिन कों लड्नो इ नाँय अँधेरे’न सों।
बिन सितारे’न कों घर बिठायौ जाय॥
हर समुद्दर नाराज ऐ धरती सों।
अब तौ परबत पे घर बसायौ जाय॥
तैरबौ जानत्वै नई पीढ़ी।
याहि अब डूबनों सिखायौ जाय॥
कछ तबीयत कौ हू खयाल रहै।
जायक’न ही पे दिल न वारौ जाय॥
संग में और जगमगामिंगे।
मोतिय’न कों लड़ी में गूँथौ जाय॥
सोचबौ भूलबे लगे हैं हम।
बक्त रहते उपाय सोचौ जाय॥
गन्ध ही स्वर्ग है ब-सर्ते 'नवीन'।
सूँघते बक्त मुस्कुरायौ जाय॥