भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आउ अब अहद कों बचायौ जाय / नवीन सी. चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आउ अब अहद कों बचायौ जाय।
तालिबे-इल्म कों पुकारौ जाय॥

जा की बारिस हैं चन्द्र की किरनें।
वा की ताकत कों और समझौ जाय॥

जिन कों लड्नो इ नाँय अँधेरे’न सों।
बिन सितारे’न कों घर बिठायौ जाय॥

हर समुद्दर नाराज ऐ धरती सों।
अब तौ परबत पे घर बसायौ जाय॥

तैरबौ जानत्वै नई पीढ़ी।
याहि अब डूबनों सिखायौ जाय॥

कछ तबीयत कौ हू खयाल रहै।
जायक’न ही पे दिल न वारौ जाय॥

संग में और जगमगामिंगे।
मोतिय’न कों लड़ी में गूँथौ जाय॥

सोचबौ भूलबे लगे हैं हम।
बक्त रहते उपाय सोचौ जाय॥

गन्ध ही स्वर्ग है ब-सर्ते 'नवीन'।
सूँघते बक्त मुस्कुरायौ जाय॥