भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आउ आउ जय सिरी ब्राह्मण / भोजपुरी
Kavita Kosh से
आउ आउ जय सिरी ब्राह्मण, तूहुँ जग जानेल ए
आहो माई हे, काठवा के नइया धइ देहु, कवन काठ उत्तिम हे।।१।।
हाँ रे, आंड़र-पांड़र आउरो काठ सेमर हे
आहे माई, सखुआ ही काठ बड़ा उत्तिम, तवने काठे मांड़ो छाव ए।।२।।
हाँ रे आउ-आउ जय सिरी ब्राह्मण, तुहुँ जग जानेल ए
आहे माई, खरवा के नइया धइ देहु, कवन खर उत्तिम हे।।३।।
हाँ रे, राड़ीय खर कटायन हे,
आहे माई, थरुआ अउरी कुहेल कूस खर उत्तिम हे।।४।।
हाँ रे, झांझर-मांझर माँड़ो छावल रे
हाँ रे, झीसिए बरसि गइले देव, मड़उवा बड़ सुन्नर हे।।५।।