आए जब चौराहे / हरीश भादानी
आए जब चौराहे
आग़ाज़ कहाए हैं
लम्हात चले जितने
परवाज़ कहाए हैं
हद तोड़ अँधेरे जब
आँखों तक धँस आए,
जीने के इरादों ने
जंगल सुलगाए हैं
आए जब चौराहे.....
जिनको दी अगुवाई
चढ़ गए कलेजे पर,
लोगों ने गरेबां से
वे लोग उठाए हैं
आए जब चौराहे.....
बंदूक ने बंद किया
जब-जब भी जुबानों को
जज्बात ने हरफ़ों के
सरबाज उठाए हैं
आए जब चौराहे.....
गुम्बद की खिड़की से
आदमी नहीं दिखता,
पाताल उलीचे हैं
ये शहर बनाए हैं
आए जब चौराहे.....
जब राज चला केवल
कुछ खास घरानों का,
काग़ज़ के इशारे पर
दरबार ढहाए हैं
आए जब चौराहे.....
मेहनत खा, सपने खा
चिमनियाँ धुआँ थूकें
तन पर बीमारी के
पैबंद लगाए हैं
आए जब चौराहे.....
दानिशमंदो बोलो
ये दौर अभी कितना
अपने ही धीरज से
हर साँस अघाए हैं
आए जब चौराहे.....
न हरीश करे लेकिन
अब ये तो करेंगे ही
झुलसे हुए लोगों ने
अंदाज़ दिखाए हैं,P.
आए जब चौराहे, आग़ाज़ कहाए हैं
लम्हात चले जितने, परवाज़ कहाए हैं