आए थे उन के साथ नज़ारे चले गए / सैफ़ुद्दीन सैफ़
आए थे उन के साथ नज़ारे चले गए
वो शब वो चांदनी वो सितारे चले गए
शायद तुम्हारे साथ भी वापस न आ सकें
वो वलवले जो साथ तुम्हारे चले गए
कश्ती तड़प के हल्क़ा-ए-तूफ़ाँ में रह गई
देखो तो कितनी दूर किनारे चले गए
हर आस्ताँ अगरचे तिरा आस्ताँ न था
हर आस्ताँ पे तुझ को पुकारे चले गए
शाम-ए-विसाल ख़ाना-ए-ग़ुर्बत से रूठ कर
तुम क्या गए नसीब हमारे चले गए
देखो तो फिर वहीं थे चले थे जहाँ से हम
कश्ती के साथ साथ किनारे चले गए
महफ़िल में किस को ताब-ए-हुज़ूर-ए-जमाल थी
आए तिरी निगाह के मारे चले गए
जाते हुजूम-ए-हश्र में हम आसियान-ए-दहर
ऐ लुत्फ़-ए-यार तेरे सहारे चले गए
दुश्मन गए तो कशमकश-ए-दोस्ती गई
दुश्मन गए कि दोस्त हमारे चले गए
जाते ही उन के ‘सैफ़’ शब-ए-ग़म ने आ लिया
रूख़्सत हुआ वो चाँद सितारे चले गए