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आए दौरि पौरि लौं अबाई सुन ऊधव की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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आए दौरि पौरि लौं अबाई सुन ऊधव की
और ही विलोकि दसा दृग भरि लेत हैं ।
कहै रतनाकर बिलोकि बिलखात उन्हैं
येऊ कर काँपत करेजै धरि लेत हैं ॥
आवंति कछूक पूछिबे और कहिबे की मन
परत न साहस पै दोऊ दरि लेत हैं ।
आनन उदास सांस भरि उकसौहैं करि
सौहैं करि नैननि निचौहैं करि लेत हैं ॥106॥