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आओ ! आओ ! / सोमदत्त

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ओ हो चिड़ियों के रंग !
ओ हो फूलों के अंग !
ओ हो स्त्री के संग !
राम ग़ुलाम !
 
तुमने तुलसी के पत्ते पर गहरा दी ज़िन्दगी
तुमने भाग के भरोसे ओढ़ी सारी गन्दगी
बन्दगी !
बन्दगी !
राम ग़ुलाम !

मछली नहीं हुए तुम, कच्छप नहीं हुए तुम
वराह नहीं हुए, नृसिंह नहीं हुए तुम
बैल हुए बैल
हाँ, नाथे बैल अर्थतन्त्र के

कैसे कैसे मज़े
कैसे कैसे सजे राजे रजवाड़े हाक़िम हुक़्क़ाम
बिना मोल दाम बाबू लोग टके कौड़ी नए पैसे में
भौसे में मजूर हुजूर के खेत कारख़ाने में सेंत-मेंत का

मुहर्रम के शेर
लंगूर मुहर्रम के
ख़ुर्रम के नहीं राम ग़ुलाम ! औलाद तुम ज़ुर्रम के
नल से पानी के लिए
टोंटी में घासलेट
पीठ से सटते पेट के वास्ते
तुमने फ़ाख़्ते उड़ाए अपने ख़ून के
अपने बच्चों के सपने रखे लॉकर में आसरे के
हॉकर ने फेंके घूरे में तुम्हारे सपने दूसरों के लफ़्ज़ों में
बाग़ सरसब्ज़ों में घूमे दूसरों के इरादे
दूसरों के इन्तक़ाम दूसरों के इन्द्रजाल सब्ज़बाग़ी
दूसरों की जोरुएँ किलकारियाँ मार-मार कर हंसी बुढ़ापे में
तुम्हारी जवानी के बल पर

राम ग़ुलाम !
तुमने नहीं सुनी मुक्ति की आवाज़ !
तुमने नहीं सुना हिकमत-मुक्तिबोध का झनझनाता साज़
हम तुम एक हैं
आओ !
आओ !

इस वक़्त हवा मुआफ़िक़ है
लोग साँस-साँस के लिए दिक् हैं
आओ !

अपने ईमान को पैरों-सा तौलें
अपनी हिम्मत को ख़ून-सा घोलें ईमान में
उड़ें
उड़ें उन्मुक्त
दुश्मन की एयरगनों के सामने
मायने अपने-आप साफ़ हो जाएंगे
कविता में अपन ख़ुद को शामिल पाएँगे

उठाएँगे सड़कों पर जंगल में नदी के बीच आकाश में
अलाप
आप ही आप
ओ हो चिड़ियों के रंग
ओ हो फूलों के अंग
ओ हो स्त्री के संग
राम ग़ुलाम !