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आओ कुछ राहत दें / दिनेश मिश्र

आओ कुछ राहत दें इस क्षण की पीड़ा को
क्योंकि नये युग की तो बात बड़ी होती है
अपने हैं लोग यहाँ बैठो कुछ बात करो
मुश्किल से हीं नसीब ऐसी घड़ी होती है

दर्द से लड़ाई की काँटों से भरी डगर
एक शुरुआत करें आज रहे ध्यान मगर,
झूठे पैगम्बर तो मौज किया करते हैं
ईसा के हाथों में कील गड़ी होती है

हमराही हिम्मत से बीहड़ को पार करो
आहों के सौदागर तबकों पर वार करो
जिनको हम शेर समझ डर जाया करते हैं
अक्सर तो भूसे पर ख़ाल मढ़ी होती है

संकल्पों और लक्ष्य बीच बड़ी दूरी है
मन है मजबूर मगर कैसी मज़बूरी है,
जब तक हम जीवन की गुत्थी को सुलझाएँ
अपनी अगवानी में मौत खड़ी होती है.