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आओ खाएँ चाट / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
मौसम थोड़ा ख़ुशगवार है
शाम हुई है, रविवार है
नानी भी घर पर आई है आओ खाएँ चाट।
बन्द करो टी०वी० तुम भईया हो जाओ तैयार
मेरी चप्पल मुझको दे दो, बनो नहीं हुशियार
बाहर से आती पुकार है
चलो-चलो स्टार्ट कार है
पापा से खाने वाले हो भईया अब तुम डाँट।
यहाँ नहीं, है वहाँ, बताशे का अच्छा पानी
जल्दी हाँ में मूड़ हिलाएँ पीछे से नानी
टोकन की लम्बी कतार है
मुहँ में जाती भरी लार है
अलग-अलग प्लेटें अपनी लो, करो न बन्दर बाँट।
एक नहीं, दो नहीं, बताशे खाए हमने बीस
लगता है कल डॉक्टर जी को देनी होगी फ़ीस
बार-बार आती डकार है
मन में बस उठता विचार है
घर जा कर अब मुझे पकड़नी होगी अपनी खाट।