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आओ गांधी को ढूँढें ...... / जितेन्द्र सोनी
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आओ गांधी को ढूँढें
ढूँढने निकलेंगे तो गांधी मिलेंगे
अक्टूबर और जनवरी में
अखबारों और समारोहों में
या फिर हरे - हरे नोटों पर,
छोटे - बड़े शहरों में चौक पर
या किसी रोड़ के बोर्ड पर
या फिर किताबों के पहले पन्ने के पीछे
हमें एक जीवन मंत्र देते हुए
वे यहाँ नहीं चाहते हैं खुद को
वे तो मिलने चाहिए
विश्वास की सीमाओं से परे
सच की राह पर
एक अहसास के रूप में
किसान के खेत में,
मजदूर के पसीने में,
साध्य साधन की पवित्रता में,
किसी गरीब की चौखट पर
चरखा कातते हुए ,
अधनंगे बच्चों की शक्ल में
जब ढूंढ लेंगे उन्हें
तो वे लेंगे
फिर से एक चैन की सांस
एक नए हिन्दुस्तान के लिए
एक नयी आज़ादी के साथ !